September 23, 2024
Why in News ? The term has been frequently used in news papers.
Urban farming is the practice of cultivating plants and raising animals within urban areas. It’s a sustainable approach to food production that can provide fresh, local produce, reduce food miles, and create green spaces in cities.
In India, urban farming has gained significant momentum in recent years due to several factors:
Rapid urbanization: With a growing population and increasing urbanization, there’s a need for sustainable food sources within cities.
Food security: Urban farming can help address food security concerns by reducing reliance on long-distance transportation of produce.
Environmental benefits: It can contribute to environmental sustainability by reducing carbon emissions, conserving water, and improving air quality.
Community engagement: Urban farming projects can foster community spirit and provide opportunities for people to connect with nature and each other.
Examples of urban farming in India:
Rooftop gardens: Many individuals and communities are utilizing rooftops to grow vegetables, herbs, and flowers.
Community gardens: Shared spaces within urban areas are transformed into community gardens, where residents can cultivate crops together.
Vertical farming: Innovative techniques like vertical farming are being explored to maximize production in limited spaces.
Hydroponics and aquaponics: These methods use nutrient-rich water and fish waste to grow plants, respectively, offering efficient and sustainable options.
**A recent example of urban farming gaining prominence in India is the “Grow Your Own Food” initiative launched by the government. This campaign encourages citizens to cultivate their own food, especially during the COVID-19 pandemic, to ensure food security and promote self-sufficiency.
Recent Examples in India:
Mumbai’s Rooftop Farms: Several buildings in Mumbai have adopted rooftop farming initiatives. For instance, the Grow Your Own Food movement encourages residents to grow their vegetables on rooftops. The initiative is spreading across other urban areas, offering an alternative to traditional markets and helping to combat food inflation.
Delhi’s Organic Terrace Gardening: In Delhi, individuals and housing societies have started terrace gardening to grow organic vegetables. NGOs and government initiatives like Mission Organic Development support these efforts by providing training and seeds to urban dwellers.
Kerala’s “Haritha Nagaram” Project: Kerala launched a unique urban farming project, “Haritha Nagaram” (Green City), encouraging people to cultivate vegetables in urban spaces. The state government provided subsidies and guidance for hydroponics and kitchen gardening in urban households.
Hyderabad’s Vertical Farming Projects: Hyderabad has seen innovations like vertical farming, where crops are grown in stacked layers in a controlled environment. This method saves space and water and is ideal for high-density urban areas.
Urban farming in India is a promising solution to the challenges of food security, environmental sustainability, and community engagement. As cities continue to grow, this practice is likely to play an increasingly important role in shaping the future of urban living.
शहरी खेती, जिसे शहरी कृषि
चर्चा में क्यों? इस शब्द का इस्तेमाल अक्सर समाचार पत्रों में किया जाता रहा है।
शहरी खेती, जिसे शहरी कृषि के रूप में भी जाना जाता है, शहरी क्षेत्रों में या उसके आसपास खाद्य पदार्थों की खेती, प्रसंस्करण और वितरण की प्रथा को संदर्भित करता है। इसमें शहर की सीमा के भीतर फल, सब्जियाँ, जड़ी-बूटियाँ उगाना और पशुधन पालन जैसी विभिन्न गतिविधियाँ शामिल हैं।
भारत में, शहरी खेती ने कई कारकों के कारण हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण गति प्राप्त की है:
तेजी से शहरीकरण: बढ़ती आबादी और बढ़ते शहरीकरण के साथ, शहरों के भीतर स्थायी खाद्य स्रोतों की आवश्यकता है।
खाद्य सुरक्षा: शहरी खेती उपज के लंबी दूरी के परिवहन पर निर्भरता को कम करके खाद्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करने में मदद कर सकती है।
पर्यावरणीय लाभ: यह कार्बन उत्सर्जन को कम करके, पानी का संरक्षण करके और वायु गुणवत्ता में सुधार करके पर्यावरणीय स्थिरता में योगदान दे सकता है।
सामुदायिक जुड़ाव: शहरी खेती परियोजनाएँ सामुदायिक भावना को बढ़ावा दे सकती हैं और लोगों को प्रकृति और एक-दूसरे से जुड़ने के अवसर प्रदान कर सकती हैं।
भारत में शहरी खेती के उदाहरण:
छत पर उद्यान: कई व्यक्ति और समुदाय सब्जियाँ, जड़ी-बूटियाँ और फूल उगाने के लिए छतों का उपयोग कर रहे हैं। सामुदायिक उद्यान: शहरी क्षेत्रों में साझा स्थानों को सामुदायिक उद्यानों में बदल दिया जाता है, जहाँ निवासी एक साथ फ़सल उगा सकते हैं।
वर्टिकल फ़ार्मिंग: सीमित स्थानों में उत्पादन को अधिकतम करने के लिए वर्टिकल फ़ार्मिंग जैसी नवीन तकनीकों की खोज की जा रही है।
हाइड्रोपोनिक्स और एक्वापोनिक्स: ये विधियाँ पौधों को उगाने के लिए क्रमशः पोषक तत्वों से भरपूर पानी और मछली के अपशिष्ट का उपयोग करती हैं, जो कुशल और टिकाऊ विकल्प प्रदान करती हैं।
**भारत में शहरी खेती का एक हालिया उदाहरण सरकार द्वारा शुरू की गई “अपना भोजन खुद उगाएँ” पहल है।
उदाहरण के लिए, ग्रो योर ओन फ़ूड मूवमेंट निवासियों को छतों पर अपनी सब्जियाँ उगाने के लिए प्रोत्साहित करता है। यह पहल अन्य शहरी क्षेत्रों में फैल रही है, जो पारंपरिक बाज़ारों का विकल्प पेश करती है और खाद्य मुद्रास्फीति से निपटने में मदद करती है।
दिल्ली की ऑर्गेनिक टेरेस गार्डनिंग: दिल्ली में, व्यक्तियों और हाउसिंग सोसाइटियों ने ऑर्गेनिक सब्ज़ियाँ उगाने के लिए टेरेस गार्डनिंग शुरू की है। एनजीओ और मिशन ऑर्गेनिक डेवलपमेंट जैसी सरकारी पहल शहरी निवासियों को प्रशिक्षण और बीज प्रदान करके इन प्रयासों का समर्थन करती हैं।
हैदराबाद की वर्टिकल फ़ार्मिंग परियोजनाएँ: हैदराबाद में वर्टिकल फ़ार्मिंग जैसे नवाचार देखे गए हैं, जहाँ नियंत्रित वातावरण में ढेरों परतों में फ़सलें उगाई जाती हैं। यह विधि जगह और पानी बचाती है और उच्च घनत्व वाले शहरी क्षेत्रों के लिए आदर्श है।
भारत में शहरी खेती खाद्य सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और सामुदायिक जुड़ाव की चुनौतियों का एक आशाजनक समाधान है। जैसे-जैसे शहर बढ़ते जा रहे हैं, यह अभ्यास शहरी जीवन के भविष्य को आकार देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना है।
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