(दैनिक महत्वपूर्ण समसामयिक घटनाक्रम)
द हिंदू/इंडियन एक्सप्रेस/पीआईबी
आकस्मिक जोखिम बफर (CRB):
खबरों में क्यों?वित्त मंत्रालय भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूंजी बफर नियमों की समीक्षा में सक्रिय रूप से शामिल है।
- ध्यान उन नियमों पर है जो यह तय करते हैं कि RBI सरकार को कितना अधिशेष या लाभांश (dividend) हस्तांतरित करता है।
- RBI अपने आर्थिक पूंजी ढांचे (Economic Capital Framework – ECF) की समीक्षा कर रहा है, और वित्त मंत्रालय भी समानांतर समीक्षा कर रहा है ताकि यह तय हो सके कि आकस्मिक जोखिम बफर (CRB) को कम करके सरकार को अधिक धन उपलब्ध कराया जा सकता है।
प्रासंगिकता:
- UPSC प्रीलिम्स: CRB और RBI की आर्थिक पूंजी।
- UPSC मेन्स: GS पेपर 3 (अर्थव्यवस्था और वित्तीय स्थिरता)।
मुख्य बिंदु:
- RBI की आर्थिक पूंजी: RBI द्वारा जोखिमों को कवर करने और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए रखे गए धन और कोष।
- आकस्मिक जोखिम बफर (CRB): अप्रत्याशित वित्तीय संकटों या जोखिमों से निपटने के लिए रखा गया एक महत्वपूर्ण कोष।
- वर्तमान CRB रेंज: RBI की बैलेंस शीट का 5.5% से 6.5% के बीच।
बैंक की आर्थिक पूंजी के बारे में:
परिभाषा:
- बैंक की आर्थिक पूंजी वह कोष और प्रावधान हैं जो RBI संभावित नुकसान को सहन करने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के लिए रखता है।
घटक:
- पुनर्मूल्यांकन खाते (मुद्रा या संपत्ति के मूल्य में बदलाव के लिए)।
- आकस्मिक कोष (CRB जैसे आपातकालीन कोष)।
- संपत्ति विकास कोष (RBI के संचालन के लिए)।
उद्देश्य:
- यह एक वित्तीय सुरक्षा कवच की तरह काम करता है, जो मुद्रा मूल्य में उतार-चढ़ाव, ऋण हानि, परिचालन जोखिमों, और बाहरी झटकों से होने वाले जोखिमों को कम करता है।
महत्व:
- यह सुनिश्चित करता है कि RBI बिना बाहरी सहायता (जैसे सरकार से) के अपने कार्यों को पूरा कर सके, जिससे देश की वित्तीय प्रणाली में विश्वास बना रहता है।
आकस्मिक जोखिम बफर (CRB) के बारे में:
परिभाषा:
- CRB वह कोष है जो RBI अप्रत्याशित वित्तीय जोखिमों और आर्थिक झटकों से निपटने के लिए रखता है।
उद्देश्य:
- बाजार में अस्थिरता, मुद्रा अवमूल्यन, या सिस्टमिक संकट जैसे जोखिमों के खिलाफ RBI की वित्तीय मजबूती को सुरक्षित करना।
संरचना:
- यह RBI की आर्थिक पूंजी का हिस्सा है, जिसे विशेष रूप से अप्रत्याशित और गंभीर परिस्थितियों को संभालने के लिए अलग रखा जाता है।
वर्तमान रेंज:
- CRB को RBI की बैलेंस शीट (संपत्ति और देनदारियों का कुल योग) के 5.5% से 6.5% के बीच रखा जाता है, जो इसके आर्थिक पूंजी ढांचे पर आधारित है।
महत्व:
- वित्तीय स्थिरता: आर्थिक अनिश्चितता के समय में RBI को स्थिर रखता है।
- जोखिमों से सुरक्षा: ऋण, बाजार, और परिचालन जोखिमों से होने वाली संभावित देनदारियों से बचाव करता है।
- विश्वसनीयता और स्वतंत्रता: RBI की विश्वसनीयता और परिचालन स्वतंत्रता को समर्थन देता है।
- लाभांश हस्तांतरण पर प्रभाव: CRB का स्तर यह तय करता है कि RBI सरकार को कितना अधिशेष या लाभांश देता है। ज्यादा CRB का मतलब है सरकार को कम पैसा, और कम CRB का मतलब है सरकार को ज्यादा पैसा लेकिन जोखिम बढ़ना।
उदाहरण:
- वित्त वर्ष 2024 में, RBI ने CRB को 6.5% पर रखते हुए सरकार को 2.11 लाख करोड़ रुपये का लाभांश हस्तांतरित किया। अगर CRB कम हो, तो सरकार को और ज्यादा धन मिल सकता है, जिसे सड़क, कल्याण योजनाओं आदि में खर्च किया जा सकता है।
मुख्य बिंदु:
- बिमल जालान समिति (2019) ने CRB को 5.5%–6.5% की रेंज में सेट किया था ताकि सुरक्षा और अधिशेष हस्तांतरण में संतुलन बना रहे।
- RBI की समीक्षा (जनवरी 2025 में शुरू) और वित्त मंत्रालय की समानांतर समीक्षा यह जांच रही है कि क्या यह रेंज बहुत सतर्क है। कुछ का मानना है कि CRB को कम करने से सरकार को अधिक धन मिल सकता है बिना RBI की स्थिरता को नुकसान पहुंचाए।
- RBI का बोर्ड 15 मई, 2025 को ECF पर चर्चा के लिए मिला, और अगली बैठक 23 मई, 2025 को वित्त वर्ष 2025 के लाभांश को अंतिम रूप दे सकती है, जो 2.6–3 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो पिछले साल के 2.1 लाख करोड़ से ज्यादा है।
गिग वर्कर्स / वर्तमान विकास और चुनौतियाँ:
खबरों में क्यों? एक गैर-सरकारी संगठन जनपहल और गिग वर्कर्स एसोसिएशन ने 15 मई, 2025 को दिल्ली में एक राउंडटेबल चर्चा आयोजित की, जिसका शीर्षक था “वर्तमान विकास, चुनौतियाँ और आगे की राह”।
- इस चर्चा ने गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के सामने आने वाली कठिनाइयों, जैसे कठिन काम की स्थिति, कानूनी संरक्षण की कमी, और सामाजिक सुरक्षा की अनुपस्थिति पर ध्यान आकर्षित किया, भले ही भारत में गिग अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही हो।
- इस आयोजन का उद्देश्य गिग वर्कर्स के अधिकारों के लिए मौजूदा नीतियों के दायरे में समाधान खोजना और हितधारकों के बीच संवाद को बढ़ावा देना था।
प्रासंगिकता:
- UPSC प्रीलिम्स: गिग वर्कर्स, गिग अर्थव्यवस्था।
- UPSC मेन्स: GS पेपर 3 (अर्थव्यवस्था, श्रम और सामाजिक सुरक्षा)।
मुख्य बिंदु:
- आयोजन: जनपहल और गिग वर्कर्स एसोसिएशन द्वारा 15 मई, 2025 को आयोजित।
- प्रतिभागी: केंद्र और राज्य सरकारों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों, और गिग वर्कर्स के प्रतिनिधि शामिल हुए।
- लक्ष्य: गिग वर्कर्स के अधिकारों के लिए नीतिगत समाधान ढूंढना और अधिक न्यायसंगत गिग अर्थव्यवस्था बनाना।
मांगें और सिफारिशें:
- त्रिपक्षीय कल्याण बोर्ड: सभी राज्यों और केंद्र स्तर पर कर्मचारियों, नियोक्ताओं, और सरकारों के प्रतिनिधियों के साथ एक कल्याण बोर्ड स्थापित करने की मांग, जो गिग वर्कर्स के कल्याण की देखरेख करे।
- न्यूनतम मजदूरी/आय: लॉग-इन समय के आधार पर न्यूनतम मजदूरी सुनिश्चित करना ताकि आय की अस्थिरता को कम किया जा सके।
- रेट कार्ड में कमी रोकना: लगातार रेट कार्ड में कमी को रोकना और उपभोक्ताओं से लिए गए अधिभार (सर्चार्ज) को वर्कर्स के साथ उचित रूप से साझा करना।
- सामाजिक सुरक्षा नीति: केंद्र सरकार से ऑनलाइन प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा नीति की घोषणा करने की मांग, जिसमें स्वास्थ्य बीमा, पेंशन, और मातृत्व लाभ शामिल हों।
- कानूनी संरक्षण: मनमानी बर्खास्तगी को रोकने और शिकायत निवारण तंत्र सुनिश्चित करने के लिए कानूनी संरक्षण की आवश्यकता।
वर्कर्स की चुनौतियाँ:
- कठिन वास्तविकताएँ: वर्कर्स ने बताया कि कंपनियाँ तानाशाही रवैया अपनाती हैं, छोटी-छोटी गलतियों या बिना कारण के आईडी ब्लॉक कर देती हैं, और बर्खास्तगी कर देती हैं।
- शिकायत निवारण की कमी: शिकायत दर्ज करने के लिए कोई ठोस रास्ता नहीं है, और समाज में गिग वर्कर्स को सम्मान की कमी का सामना करना पड़ता है।
- असंगठित प्रकृति: अधिकांश गिग वर्कर्स असंगठित हैं, और कंपनियाँ विरोध या संगठन बनाने वाले वर्कर्स को बर्खास्त करके यूनियन बनाने के प्रयासों को दबाती हैं।
नीतिगत संदर्भ:
- सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020: यह संहिता गिग वर्कर्स के लिए सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को अनिवार्य करती है, लेकिन इसका पूर्ण कार्यान्वयन अभी बाकी है।
- राज्य-स्तरीय पहल: राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों ने कानून बनाए हैं, जो कल्याण बोर्ड और फंड (जैसे, एग्रीगेटर्स द्वारा 1-2% राजस्व योगदान) स्थापित करते हैं।
- केंद्रीय बजट 2025-26: गिग वर्कर्स को आयुष्मान भारत PM-JAY के तहत स्वास्थ्य कवरेज और कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) के माध्यम से पेंशन लाभ देने की घोषणा की गई है, जो एग्रीगेटर्स द्वारा लेनदेन-आधारित योगदान से वित्तपोषित होगा।
- ई-श्रम पोर्टल 2.0: अक्टूबर 2024 में लॉन्च, यह प्लेटफॉर्म वर्कर्स के पंजीकरण को आसान बनाता है और उन्हें जीवन और दुर्घटना बीमा जैसे लाभों से जोड़ता है।
परिणाम:
- राउंडटेबल की सिफारिशें नीति निर्माताओं को भेजी जाएंगी ताकि गिग अर्थव्यवस्था में व्यवस्थित शोषण को दूर किया जा सके और वर्कर्स के अधिकार सुनिश्चित किए जा सकें।
गिग वर्कर्स कौन हैं?
· सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 के अनुसार, गिग वर्कर्स वे व्यक्ति हैं जो पारंपरिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के बाहर काम करते हैं और अस्थायी, लचीले रोजगार के माध्यम से आय अर्जित करते हैं। |
प्रकार:
प्लेटफॉर्म वर्कर्स: जैसे उबर, जोमैटो, स्विगी पर काम करने वाले।
गैर-प्लेटफॉर्म वर्कर्स: जैसे निर्माण कार्य, दिहाड़ी मजदूर।
महत्व: ये वर्कर्स अर्थव्यवस्था और समाज में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, लेकिन सामाजिक सुरक्षा और कानूनी संरक्षण तक उनकी पहुंच सीमित है।
आर्थिक योगदान:
- सेवा क्षेत्र की वृद्धि: गिग वर्कर्स भारत की नई सेवाओं की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देते हैं, जैसे ओला, उबर, जोमैटो, और स्विगी, जो उपभोक्ता सुविधा और बाजार पहुंच को बढ़ाते हैं। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर सेवा क्षेत्र का तेजी से बदलाव गिग वर्कर्स पर निर्भर है।
- कार्यबल का आकार: NITI Aayog Report 2022 के अनुसार, 2020-21 में 77 लाख गिग वर्कर्स थे, जो 2029-30 तक 235 लाख हो जाएंगे, जो भारत की कुल कार्यबल का 4.1% और गैर-कृषि कार्यबल का 6.7% होगा।
- लचीलापन और नवाचार: गिग वर्कर्स व्यवसायों को लचीला श्रम प्रदान करते हैं, जिससे बिना दीर्घकालिक प्रतिबद्धताओं के विस्तार संभव होता है। यह गिग अर्थव्यवस्था में नवाचार को बढ़ावा देता है और GDP वृद्धि में योगदान देता है।
- कौशल विविधता: लगभग 47% गिग कार्य मध्यम-कुशल (जैसे डिलीवरी, परिवहन), 22% उच्च-कुशल (जैसे फ्रीलांस सॉफ्टवेयर विकास), और 31% निम्न-कुशल (जैसे मैनुअल कार्य) हैं, जो बाजार की विविध जरूरतों को पूरा करते हैं।
सामाजिक योगदान:
- रोजगार के अवसर: गिग अर्थव्यवस्था लाखों लोगों, खासकर शहरी क्षेत्रों में, के लिए आय के अवसर प्रदान करती है, जिससे बेरोजगारी कम होती है और पारंपरिक नौकरियों तक पहुंच न रखने वालों का समर्थन होता है।
- सामाजिक गतिशीलता: डेटा पोर्टेबिलिटी (जैसे, कार्य इतिहास और रेटिंग्स को प्लेटफॉर्म्स में स्थानांतरित करना) और राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के साथ अपस्किलिंग पहल गिग वर्कर्स को उच्च-वेतन वाली भूमिकाओं या उद्यमिता की ओर बढ़ने में मदद करती है।
- सामुदायिक समर्थन: गिग वर्कर्स संकटकाल में, जैसे COVID-19 लॉकडाउन के दौरान, खाद्य और दवाइयों की डिलीवरी करके समुदायों के लिए जीवन रेखा बन गए। उदाहरण के लिए, इंडियन फेडरेशन ऑफ ऐप-बेस्ड ट्रांसपोर्ट वर्कर्स (IFAT) ने 2020 में सुरक्षा उपकरणों के लिए विरोध प्रदर्शन आयोजित किए।
योगदान में चुनौतियाँ:
- सामाजिक सुरक्षा की कमी: अपने योगदान के बावजूद, गिग वर्कर्स को न्यूनतम मजदूरी, स्वास्थ्य बीमा, पेंशन, और मातृत्व लाभ जैसे संस्थागत संरक्षण नहीं मिलते, क्योंकि उन्हें स्वतंत्र ठेकेदार (independent contractors) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है, न कि कर्मचारी।
- शोषण: राउंडटेबल ने मनमानी बर्खास्तगी, एल्गोरिदम की अस्पष्टता, और रेट कार्ड में कमी जैसे मुद्दों को उजागर किया, जो उनकी आर्थिक स्थिरता और योगदान को कमजोर करते हैं।
- असंगठित प्रकृति: अधिकांश गिग वर्कर्स यूनियन में शामिल नहीं हैं, जिससे बेहतर परिस्थितियों के लिए सामूहिक सौदेबाजी की उनकी क्षमता सीमित है, क्योंकि कंपनियाँ संगठन के प्रयासों को दबाती हैं।
नीतियों का योगदान पर प्रभाव:
- केंद्रीय बजट 2025-26: आयुष्मान भारत PM-JAY के माध्यम से स्वास्थ्य कवरेज और EPFO के जरिए पेंशन की पहल गिग वर्कर्स के भविष्य को सुरक्षित करती है, जिससे उनकी उत्पादकता बढ़ सकती है।
- ई-श्रम पोर्टल 2.0: अक्टूबर 2024 में लॉन्च, यह पोर्टल प्लेटफॉर्म वर्कर्स के पंजीकरण को सरल बनाता है और उन्हें जीवन और दुर्घटना बीमा जैसे लाभों से जोड़ता है, जिससे उनके योगदान को मान्यता और संरक्षण मिलता है।
- राज्य कानून: राजस्थान और कर्नाटक जैसे राज्यों के कानून एग्रीगेटर्स से 1-2% राजस्व योगदान को अनिवार्य करते हैं, जो सामाजिक सुरक्षा योजनाओं को वित्तपोषित कर सकते हैं, जिससे वित्तीय असुरक्षा कम होती है और गिग वर्कर्स अधिक प्रभावी ढंग से योगदान दे सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का 3 महीने की समय सीमा:
खबरों में क्यों? केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर सवाल उठाया है, जिसमें राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राज्यपालों द्वारा भेजे गए कानूनों पर फैसला करने के लिए तीन महीने की समय सीमा का सुझाव दिया गया था।
- केंद्र ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट से अनुच्छेद 143(1) के तहत राय मांगी है कि क्या कोर्ट ऐसी समय सीमा तय कर सकता है, जब संविधान में इसका कोई उल्लेख नहीं है।
प्रासंगिकता:
- UPSC प्रीलिम्स: अनुच्छेद 201 और अन्य संबंधित संवैधानिक प्रावधान।
- UPSC मेन्स: GS पेपर 2 (संवैधानिक ढांचा, केंद्र-राज्य संबंध, और न्यायिक समीक्षा)।
मुद्दा क्या है?
- केंद्र सरकार का सवाल: सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल 2025 में कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा भेजे गए कानूनों पर तीन महीने के भीतर फैसला करना चाहिए। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 201 में ऐसी कोई समय सीमा नहीं है।
- केंद्र पूछ रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसी समय सीमा लागू कर सकता है, और क्या राष्ट्रपति और राज्यपालों के फैसलों की न्यायिक समीक्षा हो सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने पहले क्या कहा?
अप्रैल 2025 का फैसला:
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- सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल मामले में कहा कि राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा अनुच्छेद 201 के तहत भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर फैसला लेना चाहिए।
- यह फैसला न्यायमूर्ति जे.बी. परदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने दिया।
आधार:
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- कोर्ट ने यह समय सीमा गृह मंत्रालय (MHA) द्वारा 2016 में जारी दिशानिर्देशों पर आधारित की, जिसमें राष्ट्रपति के लिए तीन महीने की समय सीमा का सुझाव दिया गया था।
- कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो (बिल को अनिश्चितकाल तक रोकने की शक्ति) नहीं है। उन्हें या तो बिल को मंजूरी देनी होगी या अस्वीकार करना होगा, और अस्वीकार करने के लिए ठोस कारण देने होंगे।
न्यायिक समीक्षा:
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- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति का अनुच्छेद 201 के तहत कोई भी फैसला या निष्क्रियता न्यायिक समीक्षा के दायरे में आता है। अगर राष्ट्रपति समय पर फैसला नहीं लेते, तो राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में मैंडमस रिट (कानूनी आदेश) के लिए जा सकती है।
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- अगर बिल की संवैधानिक वैधता पर सवाल है, तो राष्ट्रपति को अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय लेनी चाहिए, हालांकि यह अनिवार्य नहीं है।
समय सीमा क्यों?
सुप्रीम कोर्ट का तर्क:
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- फैसले में देरी से राज्यों में शासन संबंधी समस्याएँ पैदा होती हैं। यह संघीय ढांचे और लोगों की इच्छा (जो विधायिका के माध्यम से व्यक्त होती है) को नुकसान पहुंचाता है।
- कोर्ट ने सकरिया आयोग (1988) और पुंछी आयोग (2010) की सिफारिशों का हवाला दिया, जिनमें विधेयकों पर समयबद्ध फैसले की बात कही गई थी।
- कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक शक्तियों का उपयोग उचित समय के भीतर होना चाहिए, भले ही संविधान में समय सीमा न हो, ताकि मनमानी या दुर्भावना को रोका जा सके।
2016 के दिशानिर्देशों का आधार:
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- कोर्ट ने गृह मंत्रालय के दो कार्यालय ज्ञापनों (Office Memorandums) का उल्लेख किया, जो 4 फरवरी, 2016 को जारी किए गए थे। इनमें कहा गया था कि राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला लेने में अधिकतम तीन महीने लगने चाहिए।
2016 के दिशानिर्देश क्या कहते हैं?
- गृह मंत्रालय (MHA) ने 2016 में कहा:
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- राज्य सरकारों से प्राप्त विधेयकों पर अंतिम फैसला लेने के लिए अधिकतम तीन महीने का समय लिया जाना चाहिए।
- अगर बिल में कोई आपत्ति है, तो उसे संबंधित राज्य सरकार के साथ साझा करना होगा, और राज्य को एक महीने के भीतर जवाब देना होगा।
प्रक्रिया:
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- गृह मंत्रालय बिल को संबंधित केंद्रीय मंत्रालय (जैसे, शिक्षा बिल को शिक्षा मंत्रालय) को भेजता है।
- वह मंत्रालय 15 दिनों में अपनी टिप्पणियाँ देता है। देरी होने पर कारण बताना होगा।
- अगर मंत्रालय की आपत्तियाँ हैं, तो राज्य सरकार को जवाब देने के लिए एक महीना दिया जाता है।
- आपातकालीन अध्यादेशों के लिए समय सीमा तीन सप्ताह है।
महत्व:
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- इन दिशानिर्देशों का उद्देश्य देरी को रोकना और केंद्र-राज्य सहयोग को बढ़ावा देना है।
- देरी से पूरी प्रक्रिया धीमी हो जाती है, जिससे राज्यों के विधायी कार्य प्रभावित होते हैं।
यह क्यों महत्वपूर्ण है?
केंद्र-राज्य संबंध: :
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- यह मुद्दा केंद्र, राज्यों, और राष्ट्रपति के बीच शक्ति संतुलन को प्रभावित करता है।
- राष्ट्रपति का फैसला राज्यों की विधायी स्वायत्तता और केंद्र के प्रभाव को दर्शाता है। देरी से संघीय ढांचा कमजोर हो सकता है।
न्यायिक अधिकार: :
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- केंद्र का सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट संवैधानिक कार्यों (जैसे अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के फैसले) के लिए समय सीमा तय कर सकता है।
- राष्ट्रपति की संदर्भ याचिका (Presidential Reference) यह स्पष्ट करेगी कि क्या कोर्ट की ऐसी शक्ति न्यायिक अतिव्याप्ति (judicial overreach) है या संवैधानिक जवाबदेही को बढ़ावा देती है।
संवैधानिक स्पष्टता:
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- इस याचिका का परिणाम यह तय करेगा कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपालों के फैसले न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं, और क्या कोर्ट अनुच्छेद 142 (पूर्ण न्याय के लिए विशेष शक्ति) का उपयोग करके राष्ट्रपति के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।
- यह यह भी स्पष्ट करेगा कि क्या बिल के कानून बनने से पहले उसकी सामग्री की न्यायिक जांच की जा सकती है।
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- कोर्ट ने कहा कि राज्यों को केंद्र के सुझावों और सवालों का समय पर जवाब देना चाहिए, ताकि सहकारी संघवाद (cooperative federalism) को बढ़ावा मिले।
- अगर राष्ट्रपति बिना कारण देरी करते हैं, तो कोर्ट इसे दुर्भावना मान सकता है।
केंद्र का दृष्टिकोण:
- केंद्र का तर्क है कि अनुच्छेद 201 में कोई समय सीमा नहीं है, और सुप्रीम कोर्ट का समय सीमा तय करना न्यायिक अतिव्याप्ति हो सकता है, क्योंकि कानून बनाना संसद का अधिकार है।
- राष्ट्रपति ने 14 सवालों के साथ सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी है, जिसमें शामिल हैं:
- क्या राष्ट्रपति के फैसले न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं?
- क्या कोर्ट अनुच्छेद 201 के तहत समय सीमा और प्रक्रिया लागू कर सकता है?
- क्या बिल के कानून बनने से पहले उसकी सामग्री की जांच हो सकती है?
- क्या अनुच्छेद 361 (राष्ट्रपति और राज्यपालों को कानूनी छूट) कोर्ट की समीक्षा को रोकता है?
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव:
- राज्यों की स्वायत्तता: देरी से विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों (जैसे तमिलनाडु) के विधायी कार्य रुक सकते हैं, जिससे केंद्र-राज्य तनाव बढ़ता है।
- संसदीय लोकतंत्र: कोर्ट का फैसला यह सुनिश्चित करता है कि विधायिका द्वारा व्यक्त जनता की इच्छा को अनिश्चितकाल तक रोका न जाए।
- विवाद: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कुछ विशेषज्ञों ने कोर्ट के फैसले को न्यायिक अतिव्याप्ति बताया, जबकि अन्य (जैसे पूर्व अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल) ने इसे संवैधानिक जवाबदेही के लिए सही कदम माना।
संयुक्त राष्ट्र का विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएँ (WESP) 2025:
खबरों में क्यों?संयुक्त राष्ट्र (UN) ने अपनी विश्व आर्थिक स्थिति और संभावनाएँ (WESP) मध्य-2025 रिपोर्ट जारी की है, जिसमें भारत को 2025 में सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में स्थान दिया गया है। हालांकि, भारत की GDP वृद्धि दर के अनुमान को 6.8% से घटाकर 6.3% कर दिया गया है।
- यह रिपोर्ट वैश्विक और घरेलू चुनौतियों को दर्शाती है, जो भारत की आर्थिक वृद्धि को प्रभावित कर रही हैं। भारत की मजबूत स्थिति के बावजूद, वैश्विक आर्थिक मंदी और अन्य जोखिमों के कारण यह चर्चा का विषय बनी हुई है।
प्रासंगिकता:
- UPSC प्रीलिम्स: भारत की GDP वृद्धि, वैश्विक आर्थिक अनुमान।
- UPSC मेन्स: GS पेपर 3 (अर्थव्यवस्था, वैश्विक व्यापार, नीति सुझाव)
मुख्य बिंदु:
1. भारत की आर्थिक वृद्धि का अनुमान:
- संशोधित अनुमान: संयुक्त राष्ट्र ने भारत की 2025 की GDP वृद्धि दर के अनुमान को 6.8% से घटाकर 6.3% कर दिया है, जो 2024 में पहले अनुमानित किया गया था।
संशोधन का कारण:
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- वैश्विक मांग में कमी: अन्य देश भारत से कम सामान खरीद रहे हैं क्योंकि उनकी अपनी अर्थव्यवस्थाएँ धीमी हो रही हैं, जिस-जो भारत के निर्यात को प्रभावित कर रहा है।
- घरेलू चुनौतियाँ: भारत में उच्च मुद्रास्फीति (महंगाई) और सख्त वित्तीय स्थिति (उच्च ब्याज दरें) के कारण आर्थिक गतिविधियाँ धीमी हो रही हैं।
- 2024 से तुलना: 2024 में भारत की GDP वृद्धि 7.1% थी। 2025 में 6.3% का अनुमान एक मंदी को दर्शाता है, लेकिन भारत अभी भी सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।
2. भारत की वैश्विक स्थिति:
- सबसे तेजी से बढ़ने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था: अनुमान में कमी के बावजूद, भारत 2025 में शीर्ष प्रदर्शन करने वाली बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। इसका कारण है:
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- मजबूत निजी खपत: खासकर शहरी क्षेत्रों में लोग खर्च कर रहे हैं।
- सार्वजनिक निवेश: सरकार बुनियादी ढांचे (जैसे सड़कें, रेलवे) पर खर्च कर रही है।
- अन्य अर्थव्यवस्थाओं से तुलना:
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- वैश्विक वृद्धि: वैश्विक अर्थव्यवस्था 2025 में 2.7% की दर से बढ़ने की उम्मीद है, जो 2024 के 2.6% से थोड़ा अधिक है।
- चीन: 2025 में 4.8% की वृद्धि की उम्मीद है, जो भारत से कम है लेकिन फिर भी महत्वपूर्ण है।
- विकसित देश: अमेरिका और यूरोपीय देशों की वृद्धि दर 1.5–2% रहने की उम्मीद है, जो भारत से काफी कम है।
3. घरेलू और सामाजिक मामलों (DESA) की रिपोर्ट:
- स्रोत: यह अनुमान संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक मामलों के विभाग (DESA) द्वारा प्रकाशित WESP रिपोर्ट से आया है।
- मुख्य अवलोकन:
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- रिपोर्ट में भारत को वैश्विक आर्थिक जोखिमपूर्ण मोड़ पर बताया गया है, जिसका मतलब है कि विश्व अर्थव्यवस्था एक जोखिम भरे दौर से गुजर रही है, जिसमें मुद्रास्फीति, भू-राजनीतिक तनाव, और जलवायु समस्याएँ शामिल हैं।
- भारत की मजबूती: वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद, भारत की वृद्धि को समर्थन मिल रहा है:
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- मजबूत निजी खपत: भारत में लोग, खासकर शहरों में, खर्च कर रहे हैं।
- सार्वजनिक निवेश: सरकार सड़कों, रेलवे, और अन्य बुनियादी ढांचे पर खर्च कर रही है, जो अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दे रहा है।
- सेवा क्षेत्र: भारत का IT, वित्त, और अन्य सेवा क्षेत्र मजबूत हैं।
4. भारत के लिए चुनौतियाँ:
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- कमजोर वैश्विक मांग: अन्य देश भारत से कम सामान खरीद रहे हैं, जिससे निर्यात प्रभावित हो रहा है।
- भू-राजनीतिक तनाव: रूस-यूक्रेन युद्ध और मध्य पूर्व में तनाव वैश्विक व्यापार को बाधित कर रहे हैं और तेल की कीमतें बढ़ा रहे हैं। भारत एक बड़ा तेल आयातक है, इसलिए यह उसकी अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है।
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- उच्च मुद्रास्फीति: खाने-पीने की चीजों, ईंधन, और अन्य जरूरी सामानों की कीमतें बढ़ रही हैं, जिससे लोगों की खरीदने की क्षमता कम हो रही है।
- सख्त वित्तीय स्थिति: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाई हैं, जिससे कर्ज लेना महंगा हो गया है और व्यवसायों का निवेश धीमा हो गया है।
- जलवायु जोखिम: बाढ़ और सूखे जैसे चरम मौसम की घटनाएँ भारत के कृषि क्षेत्र को प्रभावित कर रही हैं, जो अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
5. संयुक्त राष्ट्र का व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण:
- वैश्विक आर्थिक मंदी: विश्व अर्थव्यवस्था एक जोखिमपूर्ण मोड़ पर है, जिसमें मुद्रास्फीति, जलवायु परिवर्तन, और भू-राजनीतिक संघर्ष जैसे जोखिम हैं।
- उभरती अर्थव्यवस्थाएँ: ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका जैसी अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं में भी धीमी वृद्धि देखी जा रही है, लेकिन भारत और चीन अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
- नीति सुझाव: संयुक्त राष्ट्र ने भारत जैसे देशों के लिए सुझाव दिए हैं:
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- निवेश बढ़ाएँ: बुनियादी ढांचे और हरित ऊर्जा-जो भारत को चाहिए कि वह सड़कों, रेलवे, और सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निवेश बढ़ाए ताकि वृद्धि बनी रहे।
- असमानता को कम करें: आर्थिक वृद्धि का लाभ गरीबों तक पहुंचना चाहिए, न कि केवल अमीरों को।
- वैश्विक सहयोग: भारत को अन्य देशों के साथ मिलकर जलवायु और व्यापार की समस्याओं का समाधान करना चाहिए।
Facts for Prelims
शहतूत बांध परियोजना:
खबरों में क्यों? शहतूत बांध परियोजना अफगानिस्तान में काबुल नदी पर भारत द्वारा प्रस्तावित एक बांध है। यह हाल ही में खबरों में है क्योंकि इसका भारत और अफगानिस्तान के संबंधों में रणनीतिक और कूटनीतिक महत्व है। यह परियोजना क्षेत्रीय राजनीति में भी अहम है, खासकर पाकिस्तान के संदर्भ में।
भारत का समर्थन: यह बांध अफगानिस्तान को भारत द्वारा वित्तपोषित एक प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजना है, जिसका उद्देश्य काबुल शहर को पीने का पानी, कृषि भूमि की सिंचाई, और बिजली उत्पादन प्रदान करना है।
- राजनीतिक बदलाव: 2021 में तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद, भारत ने तालिबान सरकार के साथ कूटनीतिक संबंध मजबूत किए हैं। यह परियोजना भारत के अफगानिस्तान में प्रभाव बनाए रखने और वहां के लोगों की मदद करने के प्रयासों का हिस्सा है, जिसके कारण यह चर्चा में है।
- पाकिस्तान के खिलाफ रणनीति: काबुल नदी का पानी पाकिस्तान में बहता है। इस बांध के निर्माण से भारत संभावित रूप से पानी के प्रवाह को नियंत्रित कर सकता है, जो पाकिस्तान की पानी आपूर्ति को प्रभावित करेगा। हाल की खबरों में कहा गया है कि भारत इस बांध का उपयोग करके पाकिस्तान में पानी की आपूर्ति को सीमित करने की रणनीति बना रहा है, जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ रहा है और यह परियोजना चर्चा का विषय बनी हुई है।
प्रासंगिकता:
- UPSC प्रीलिम्स: शहतूत बांध, भारत-अफगानिस्तान संबंध, क्षेत्रीय भू-राजनीति।
- UPSC मेन्स: GS पेपर 2 (अंतरराष्ट्रीय संबंध, भारत की विदेश नीति, क्षेत्रीय सहयोग)।
भारत का अफगानिस्तान को समर्थन
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- यह 236 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से बनने वाली परियोजना है, जिसे भारत द्वारा वित्तपोषित और भारतीय इंजीनियरों द्वारा बनाया जाएगा।
उद्देश्य:
- काबुल शहर के लगभग 20 लाख निवासियों को पीने का स्वच्छ पानी प्रदान करना।
- 4,000 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई करना।
- बिजली उत्पादन और पर्यटन को बढ़ावा देना।
विवरण:
- बांध काबुल प्रांत के चाहर आसियाब जिले में मैदान नदी (काबुल नदी की सहायक नदी) पर बनाया जाएगा।
- यह 147 मिलियन घन मीटर पानी का भंडारण करेगा और काबुल के पास देह साब्ज नामक नए शहर को पानी प्रदान करेगा।
महत्व:
- काबुल में पानी की कमी एक बड़ी समस्या है, जहां 68% लोग पाइपलाइन से पानी नहीं पाते और केवल 10% को पीने योग्य पानी मिलता है। यह बांध इस समस्या को हल करेगा।
यह भारत-अफगानिस्तान मित्रता का प्रतीक है, जिसे पूर्व राष्ट्रपति अशरफ घानी ने “जीवन का उपहार” कहा था।
हाल की स्थिति:
- 2021 में भारत और अफगानिस्तान ने इस परियोजना के लिए समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए।
- तालिबान के सत्ता में आने के बाद परियोजना रुकी थी, लेकिन 2022 में तालिबान ने भारत से इसे पूरा करने का आग्रह किया।
- जून 2022 में भारत ने एक तकनीकी दल भेजा था ताकि अफगानिस्तान में अपनी परियोजनाओं की स्थिति का आकलन किया जा सके।
- हाल की खबरों में कहा गया है कि भारत तालिबान के साथ संबंध मजबूत कर इस परियोजना को जल्द शुरू करने की योजना बना रहा है।
पाकिस्तान के खिलाफ रणनीतिक कदम:
काबुल नदी का पानी पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में बहता है, जहां यह पेशावर के 20 लाख निवासियों और पेशावर घाटी की सिंचाई के लिए महत्वपूर्ण है। यह वर्सक बांध को भी शक्ति देता है, जो 250 मेगावाट बिजली उत्पादन करता है।
शहतूत बांध और काबुल नदी पर अन्य प्रस्तावित 12 बांधों से पाकिस्तान में पानी का प्रवाह 16-17% तक कम हो सकता है, जिससे वहां पानी की कमी और कृषि पर असर पड़ सकता है।
- पाकिस्तान ने इस परियोजना का विरोध किया है, क्योंकि उसके पास अफगानिस्तान के साथ जल-बंटवारा संधि नहीं है, जिससे यह एक संभावित संघर्ष का कारण बन सकता है।
- हाल की X पोस्ट्स में दावा किया गया है कि भारत इस बांध का उपयोग करके पाकिस्तान की पानी आपूर्ति को रोकने की रणनीति बना रहा है, जिससे क्षेत्रीय तनाव बढ़ रहा है। हालांकि, यह जानकारी पुष्ट नहीं है।
अफगानिस्तान में भारत की अन्य प्रमुख परियोजनाएँ:
भारत ने 2001 से अफगानिस्तान में 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की परियोजनाओं में निवेश किया है, जो बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा, और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देती हैं। शहतूत बांध के अलावा कुछ प्रमुख परियोजनाएँ निम्नलिखित हैं:
अफगान संसद भवन (काबुल):
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- भारत ने काबुल में अफगान संसद भवन बनाया, जिसे 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उद्घाटन किया। इसकी लागत 90 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
- यह अफगानिस्तान की लोकतंत्र के लिए भारत के समर्थन का प्रतीक है, जहां देश के सांसद काम करते हैं।
सलमा बांध (हेरात प्रांत):
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- इसे अफगान-भारत मित्रता बांध के नाम से जाना जाता है। इसे भारत ने पुनर्निर्मित किया और 2016 में उद्घाटन किया गया। इसकी लागत 290 मिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
- यह 42 मेगावाट बिजली पैदा करता है और 75,000 हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई करता है, जिससे हजारों परिवारों को बिजली और खेती में मदद मिलती है।
जरांज-देलाराम राजमार्ग:
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- भारत ने 218 किलोमीटर लंबा यह राजमार्ग बनाया, जो जरांज (ईरान की सीमा के पास) को देलाराम से जोड़ता है। इसे 2009 में 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से पूरा किया गया।
- भारत के बॉर्डर रोड्स ऑर्गनाइजेशन द्वारा निर्मित, यह अफगानिस्तान को ईरान के चाबहार बंदरगाह से जोड़ता है, जिससे पाकिस्तान को बायपास करके व्यापार संभव होता है।
इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान (काबुल):
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- भारत ने इस प्रमुख बाल चिकित्सा अस्पताल को बहाल किया, जिसे मूल रूप से 1972 में भारतीय सहायता से बनाया गया था और युद्धों में क्षतिग्रस्त हो गया था। यह अब अफगानिस्तान के सर्वश्रेष्ठ बाल देखभाल केंद्रों में से एक है।
- भारत काबुल, हेरात, और कंधार जैसे शहरों में भारतीय चिकित्सा मिशन भी चलाता है, जो मुफ्त परामर्श प्रदान करते हैं।
बिजली और दूरसंचार बुनियादी ढांचा:
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- भारत ने पुल-ए-खुमरी से काबुल तक 220kV डीसी ट्रांसमिशन लाइन और चिमताला पावर सबस्टेशन बनाया, जो काबुल को बिजली देता है।
- इसने 11 प्रांतों में टेलीफोन एक्सचेंज को अपग्रेड किया और सभी 34 प्रांतों में अफगानिस्तान के राष्ट्रीय टीवी नेटवर्क को अपलिंक और डाउनलिंक के साथ विस्तारित किया।
शिक्षा और क्षमता निर्माण:
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- भारत ने काबुल में हबीबिया हाई स्कूल का पुनर्निर्माण किया और कंधार में अफगान राष्ट्रीय कृषि विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (ANASTU) स्थापित किया।
- 65,000 से अधिक अफगान छात्रों ने भारत में छात्रवृत्ति के माध्यम से पढ़ाई की है, जिनमें 3,000 अफगान महिलाएँ शामिल हैं। 2023 तक, लगभग 14,000 अफगान छात्र भारत में पढ़ रहे हैं।
- भारत अफगान युवाओं और महिलाओं के लिए व्यावसायिक प्रशिक्षण और अफगान सिविल सेवकों, पुलिस, और सैनिकों को प्रशिक्षण प्रदान करता है।