

डेली करेंट अफेयर्स 2020
विषय: प्रीलिम्स और मेन्स के लिए
समर्थ योजना
22nd September, 2020
G.S. Paper-II (National)
संदर्भ–
केंद्रीय कपड़ा मंत्री द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, समर्थ योजना के तहत 18 राज्य सरकारों को पारंपरिक और संगठित क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने के लिए 3.6 लाख लाभार्थियों को प्रशिक्षित करने का लक्ष्य प्रदान किया गया है।
समर्थ योजना के बारे में-
- इस योजना को, ‘वस्त्र उद्योग में क्षमता निर्माण योजना’(Scheme for Capacity Building in Textile Sector– SCBTS) के रूप में भी जाना जाता है।
- इसेवस्त्र मंत्रालय द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
- इसका उद्देश्य, मांग आधारित, रोजगार उन्मुखराष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (National Skills Qualifications Framework– NSQF) अनुपालन कौशल कार्यक्रम प्रदान करना है।
लक्ष्य-
इस योजना का लक्ष्य, संगठित क्षेत्र में कताई और बुनाई को छोड़कर, 10 लाख लोगों (पारंपरिक क्षेत्र में 9 लाख और गैर पारंपरिक क्षेत्र में 1 लाख) को प्रशिक्षित करना है।
योजना की प्रमुख विशेषताऐं-
- प्रशिक्षकों का प्रशिक्षण (Training of Trainers- ToT)
- आधार सक्षम बायोमेट्रिक अटेंडेंस सिस्टम (AEBAS)
- प्रशिक्षण कार्यक्रम की सीसीटीवी रिकॉर्डिंग
- हेल्पलाइन नंबरों सहित कॉल सेंटर
कार्यान्वयन करने वाली एजेंसियां-
- वस्त्र उद्योग
- वस्त्र उद्योग के साथ रोजगार अनुबंध तथा प्रशिक्षण अवसंरचना रखने वाली राज्य सरकारे/ कपड़ा मंत्रालय के संगठन। / संस्थान
- प्रतिष्ठित प्रशिक्षण संस्थान / NGO / सोसायटी / ट्रस्ट / संगठन / कंपनी / स्टार्ट अप / वस्त्र उद्योग के साथ रोजगार अनुबंध रखने वाले टेक्सटाइल सेक्टर में सक्रिय उद्यमी।
गिलगित-बाल्टिस्तान
G.S. Paper-II (International)
संदर्भ-
पाकिस्तान ने गिलगित-बाल्टिस्तान के दर्जे को बढ़ाकर इसे एक पूर्ण प्रांत बनाने का फैसला किया है। जबकि, भारत पहले ही पाकिस्तान को स्पष्ट शब्दों में यह बता चुका है कि संपूर्ण केंद्र शासित जम्मू–कश्मीर, लद्दाख तथा गिलगित–बाल्टिस्तान के क्षेत्र, राज्य-विलय के वैधानिक और अखण्डनीय प्रावधानों के अनुसार, भारत के अभिन्न अंग हैं।
विवाद का कारण-
वर्ष 2009 से गिलगित-बाल्टिस्तान एक ‘प्रांतीय स्वायत्त क्षेत्र’ (Provincial Autonomous Region) के रूप में प्रशासित हो रहा है।
- वर्तमान में यह क्षेत्रपाकिस्तान द्वारा नियंत्रित है।
- साथ ही, हाल के एक आदेश में, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस क्षेत्र में आम चुनाव कराने हेतुगिलगित–बाल्टिस्तान सरकार, आदेश 2018 में संशोधन करने की अनुमति दी गयी है।
गिलगित-बाल्टिस्तान की अवस्थिति-
- गिलगित-बाल्टिस्तान, उत्तर में चीन, पश्चिम में अफगानिस्तान, और दक्षिण पूर्व में कश्मीर के साथ सीमा बनाता है।
- यहपाक–अधिकृत कश्मीर के साथ एक भौगोलिक सीमा साझा करता है, तथा भारत इसे अविभाजित जम्मू और कश्मीर का हिस्सा मानता है, जबकि पाकिस्तान इस क्षेत्र को पाक-अधिकृत कश्मीर (PoK) से अलग मानता है।
- गिलगित-बाल्टिस्तान की एकक्षेत्रीय विधानसभा और एक निर्वाचित मुख्यमंत्री होता है।
प्रमुख बिंदु-
- चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारा(China-Pakistan Economic Corridor -CPEC) गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र से होकर गुजरता है।
- इस क्षेत्र मे पांच पर्वत-शिखरों की ऊंचाई ‘आठ-हजार’ मीटर से अधिक है, तथा पचास से अधिक पर्वत-शिखर 7,000 मीटर (23,000 फीट) से अधिक ऊंचाई के है।
- ध्रुवीय क्षेत्रों के अलावा, दुनिया के तीन सबसे बड़े ग्लेशियरगिलगित-बाल्टिस्तान में पाए जाते हैं।
गिलगित-बाल्टिस्तान पर पाकिस्तान का नियंत्रण-
वर्ष 1846 में सिख सेना को हराने के बाद, अंग्रेजों ने गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र को जम्मू और कश्मीर के अन्य भागों सहित जम्मू के डोगरा शासक गुलाब सिंह को बेच दिया था।
- किंतु अंग्रेजों ने इस क्षेत्र पर नियंत्रण रखने के लिए महाराजा से इसे पट्टे (Lease) पर ले लिया था। इस पट्टे को अंतिम बार वर्ष 1935 में नवीनीकृत किया गया था।
- 1947 में, कर्नल की रैंक के एक ब्रिटिश सेना अधिकारी ने गिलगित-बाल्टिस्तान मेंमहाराजा हरि सिंह के गवर्नर को कैद कर लिया तथा इस क्षेत्र को पाकिस्तान में विलय के लिए सौंप दिया।
आगे की अड़चने-
- गिलगित- बाल्टिस्तान जम्मू-कश्मीर का हिस्सा है और इस तरह के किसी भी कदम से पाकिस्तान के कश्मीर संबंधी मामले को गंभीर नुकसान होगा।13 अगस्त, 1948 और 5 जनवरी, 1949 में पारित किए गए संयुक्त राष्ट्र के दो प्रस्तावों द्वारा स्पष्ट रूप से गिलगित- बाल्टिस्तान (GB) और कश्मीर मुद्दे के मध्य एक कड़ी स्थापित की गई है।
- इस क्षेत्र को पाँचवाँ प्रांत बनाने सेकराची समझौते तथा साथ ही संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों का उल्लंघन होगा, जिससे कश्मीर मुद्दे पर उसकी स्थिति को नुकसान होगा। कराची समझौता, संभवतः एकमात्र उपकरण जो पाकिस्तान के गिलगित- बाल्टिस्तान प्रशासन को अस्पष्ट कानूनी अधिकार प्रदान करता है।
- ऐसा कोई भी कदम, वर्ष1963 के पाक–चीन सीमा समझौते का भी उल्लंघन होगा। जिसके अनुसार, संप्रभु प्राधिकरण के साथ चीन की वार्ता, ‘पाकिस्तान और भारत के बीच कश्मीर विवाद के निपटारे के बाद’ तथा 1972 के शिमला समझौते, (जिसमे कहा गया है, कि ‘दोनों पक्ष, स्थिति में एकतरफा परिवर्तन नहीं करेंगे’) को हल करने के बाद ही पुनः शुरू की जायेगी।
शुक्र ग्रह पर अलौकिक जीवन के संभावित संकेत
G.S. Paper-III (S & T)
- वैज्ञानिकों ने शुक्र ग्रह पर पर जीवन के संभावित संकेतों का पता लगाया है। वैज्ञानिकों ने हाल ही में शुक्र ग्रह के अम्लीय बादलों में फॉस्फीन नामक एक गैस का पता लगाया है जिससे यह इंगित होता है कि, पृथ्वी के पड़ोसी में जीवाणुओं का वास हो सकता है।
- हवाई में जेम्स क्लर्क मैक्सवेल टेलीस्कोप का उपयोग करके एक अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक टीम द्वारा शुक्र ग्रह में पहली बार फॉस्फीन की उपस्थिति को देखा गया। इन शोधकर्ताओं ने बाद में चिली में ALMA (अटाकामा लार्ज मिलिमीटर / सबमिलिमिटर एरे) रेडियो टेलीस्कोप का उपयोग करके अपनी इस खोज की पुष्टि की। यह अध्ययन वैज्ञानिक पत्रिका – नेचर एस्ट्रोनॉमीमें प्रकाशित हुआ था।
इस खोज का क्या अर्थ है?
- अध्ययन के सह-लेखक क्लारा सूसा-सिल्वा के अनुसार, शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन को खोजने के लिए सबसे प्रशंसनीय व्याख्या अलौकिक जीवन का अस्तित्व है। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में सोसा-सिल्वा आणविक खगोल भौतिकीविद् हैं।
- उन्होंने बताया कि, यह खोज बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि, “यदि यह फॉस्फीन है, और यदि यह जीवन है, तो इसका मतलब है कि हम अकेले नहीं हैं।“ उन्होंने कहा कि, इसका मतलब है कि, जीवन खुद में एक बहुत सामान्य-सी प्रक्रिया है और हमारी आकाशगंगा में कई अन्य ग्रह जीवन से आबाद होने चाहिए।
फॉस्फीन क्या है?
फॉस्फीन परिवेशी तापमान पर एक ज्वलनशील, रंगहीन और विस्फोटक गैस है जिसमें लहसुन या सड़ने वाली मछली की गंध होती है।
शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन की उपस्थिति-
- फॉस्फीन का पता शुक्र ग्रह के वायुमंडल के समशीतोष्ण क्षेत्र में 20 भाग – प्रति बिलियन में लगभग 50 किमी की ऊंचाई पर लगाया गया था, यह एक ऐसा संकेंद्रण है जो ज्ञात रासायनिक प्रक्रियाओं से संभव नहीं है, क्योंकि शुक्र ग्रह में उच्च तापमान और फॉस्फीन बनाने के लिए दबाव का अभाव है जिस तरह से अन्य गैस से युक्त विशाल ग्रह जैसेकि बृहस्पति करते हैं।
- इस अध्ययन में यह कहा गया है कि, शुक्र ग्रह पर फॉस्फीन की उपस्थिति के लिए संभावित स्पष्टीकरण कुछ अज्ञात फोटोकैमिस्ट्री या जियोकेमिस्ट्री हो सकते हैं या फिर, पृथ्वी पर PH3 के जैविक उत्पादन के सादृश्य हो सकते हैं – यह जीवन की उपस्थिति से भी संभव हो सकता है।
- इस अध्ययन के प्रमुख लेखक जेन ग्रीव्स ने यह खुलासा किया है कि, शोधकर्ताओं ने अपने शोध में ज्वालामुखी, उल्कापिंड, बिजली और विभिन्न प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रियाओं जैसे संभावित गैर-जैविक स्रोतों की भी जांच की, लेकिन इनमें से कोई भी दिखाई नहीं दिया।
अलौकिक जीवन के संभावित संकेत-
- अंतरिक्ष अध्ययन शुरू किए जाने के बाद से लोकोत्तर जीवन का अस्तित्व विज्ञान के सर्वोपरि प्रश्नों में से एक रहा है। वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल और उससे आगे के अन्य ग्रहों और चंद्रमाओं पर“बायोसिग्नेचर्स“ या जीवन के अप्रत्यक्ष संकेतों की तलाश के लिए जांच और दूरबीन का उपयोग किया है।
- हालांकि, शुक्र ग्रह हमारे सौर मंडल में जीवन की खोज का केंद्र बिंदु नहीं था। मंगल ग्रह और बाहरी दुनिया के अन्य ग्रह अलौकिक जीवन के संभावित संकेतों का पता लगाने के लिए बड़े पैमाने पर केंद्र बिंदु रहे हैं।
शुक्र ग्रह निर्जन क्यों है?
- सूर्य से दूसरे ग्रह और पृथ्वी के निकटतम पड़ोसी ग्रह, इस शुक्र ग्रह की संरचना ऐसी है जो पृथ्वी की तरह ही है लेकिन पृथ्वी से थोड़ी छोटी है। इस ग्रह को घने, विषैले वातावरण में लिपटे होने के लिए जाना जाता है जो गर्मी को रोकता है। शुक्र ग्रह की सतह का तापमान लगभग 471 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, जोकि इतना अधिक गर्म होता है कि सीसा पिघल जाए इसलिए, इस ग्रह को जीवन रहित या निर्जन माना जाता है।
- अध्ययन के सह-लेखक क्लारा सूसा-सिल्वा के अनुसार, शुक्र ग्रह की सतह पर बहुत लंबे अरसे पहले जीवन हो सकता था और बहुत समय पहले जब किसी ग्रीनहाउस प्रभाव ने इस ग्रह के विशाल हिस्से को पूरी तरह से निर्जन बना दिया। उन्होंने आगे यह कहा है कि, वे केवल अनुमान लगा सकती हैं कि, अगर शुक्र ग्रह पर जीवन हो सकता है तो क्या वह जीवन बच सकता है।
पृष्ठभूमि-
शुक्र ग्रह पर जीवन की उपस्थिति की पुष्टि करने के लिए एक नई अंतरिक्ष जांच की आवश्यकता हो सकती है। यह नवीनतम अध्ययन अलौकिक जीवन के निशान खोजने के लिए अंतर्राष्ट्रीय नीति में एक बड़ा बदलाव ला सकता है।
प्री के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
सौर कलंक (Sunspots):
ये सूर्य के प्रकाश मंडल की अस्थायी घटनाएं हैं। जब सूर्य के किसी भाग का ताप अन्य भागों की तुलना में कम हो जाता है तो धब्बे के रूप में दिखता है, इसे सौर कलंक कहते हैं। इस धब्बे का जीवनकाल कुछ घंटे से लेकर कुछ सप्ताह तक होता है।
सौर प्रज्वाल (solar flare):
यह सूरज की सतह के किसी स्थान पर अचानक बढ़ने वाली चमक को कहते हैं। यह प्रकाश वर्णक्रम के बहुत बड़े भाग के तरंगदैर्घ्यों (वेवलेन्थ) पर उत्पन्न होता है। सौर प्रज्वाल में कभी-कभी कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (coronal mass ejection) भी होता है जिसमें सूरज के कोरोना से प्लाज़्मा और चुम्बकीय क्षेत्र बाहर फेंक दिये जाते हैं। यह सामग्री तेज़ी से सौर मंडल में फैलती है और इसके बादल बाहर फेंके जाने के एक या दो दिन बाद पृथ्वी तक पहुँच जाते हैं। इनसे अंतरिक्ष यानों पर दुष्प्रभाव के साथ-साथ पृथ्वी के आयनमंडल पर भी प्रभाव पड़ सकता है, जिस से दूरसंचार प्रभावित होने की सम्भावना बनी रहती है।