

डेली करेंट अफेयर्स 2020
विषय: प्रीलिम्स और मेन्स के लिए
ईस्टर्न डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडोर
G.S. Paper-III
संदर्भ:
शीघ्र ही, प्रधानमंत्री द्वारा न्यू भाऊपुर – न्यू खुर्जा सेक्शन और ईस्टर्न डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर/ माल ढुलाई हेतु समर्पित गलियारा (Eastern Dedicated Freight Corridor) के परिचालन नियंत्रण केंद्र का उद्घाटन किया जाएगा।
ईस्टर्न कॉरीडोर / पूर्वी गलियारे के बारे में:
- लंबाई: 1856 किमी।
- यहदो पृथक खंडों से मिलकर बना है: एक विद्युतीकृत डबल-ट्रैक खंड और एक विद्युतीकृत एकल-ट्रैक खंड।
- विस्तार:इस कॉरिडोर लुधियाना (पंजाब) के पास साहनेवाल से शुरू होकर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड राज्यों से होकर गुजरेगा और पश्चिम बंगाल के दनकुनी में समाप्त होगा।
- इसका निर्माणडेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (DFCCIL) द्वारा किया जा रहा है, जिसे डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर के निर्माण और संचालन के लिए एक विशेष प्रयोजन वाहन के रूप में स्थापित किया गया है।
महत्व:
पूर्वी गलियारा, पूर्वी कोयला क्षेत्रों से उत्तरप्रदेश के उत्तरी क्षेत्रों, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान के कुछ भागों में स्थित बिजली संयंत्रों के लिए कोयला-यातायात को सुगम बनाएगा तथा पूर्व में स्थित इस्पात संयत्रों को राजस्थान से चूना पत्थर तथा खाद्यान्न, सीमेंट, उर्वरक आदि वस्तुओं का परिवहन करेगा।
डेडीकेटेड फ्रेट कॉरीडोर (DFCs) की आवश्यकता-
- बढ़ा हुआ बोझ: इन गलियारों की कुल लम्बाई 10,122 किलोमीटर है और इन पर सर्वाधिक यातायात होता है इसके अलावा ये अत्यधिक भीड़भाड़ युक्त होते हैं। 2017 की मेक-इन-इंडिया रिपोर्ट के अनुसार, इन मार्गों पर 52% यात्री परिवहन और 58% माल परिवहन होता है। इसके अलावा, इन मार्गों पर क्षमता से अधिक यातायात होता है, और इन लाइनों की क्षमता का उपयोग 150% तक पहुंच जाता है।
- मांग में वृद्धि:सड़क परिवहन से जुड़े परिवहन मार्गों, अत्यधिक भीड़ वाले मार्गों और ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को ध्यान में रखते हुए, ये माल ढुलाई गलियारे लागत को कम करने और तीव्र-परिवहन को सुगम बनाने में सहायक होंगे।
- राजस्व सृजन: ये गलियारे निवेश के लिए नए रास्ते खोलेंगे, क्योंकि इन मार्गों पर औद्योगिक गलियारों और लॉजिस्टिक पार्कों का भी निर्माण होगा।
प्री के लिए महत्वपूर्ण तथ्य
सही फसल अभियान
- इस कार्यक्रम की शुरुआत वर्ष 2019 में राष्ट्रीय जल मिशन के तहत की गयी थी, इसका उद्देश्य पानी की कमी वाले क्षेत्रों में किसानों को कम पानी की जरूरत वाली, पानी का कुशलता पूर्वक उपयोग, आर्थिक रूप से लाभप्रद, स्वास्थ्य और पोषण से भरपूर, क्षेत्र के कृषि-जलवायु-जलीय विशेषताओं के अनुकूल और पर्यावरण के अनुकूल फसलों को उगाने के लिए प्रेरित करना था।
- ‘सही फसल’ अभियान के तहत उपयुक्त फसलों के उत्पादन, सूक्ष्म सिंचाई, मृदा में नमी संरक्षण आदि पर किसानों के बीच जागरूकता पैदा करना; अधिक पानी की जरूरत वाली फसलों जैसे धान, गन्ना, मक्का इत्यादि से किसानों को दूर रखना, और अंततः किसानों की आय में वृद्धि करने पर ध्यान केंद्रित किये जाने वाले प्रमुख बिंदु है।